"बस एक सोच "
एक सोच ही तो है
बस एक सोच ही तो है |
गिरते को उठा दे या उठते को गिरा दे ,
बस एक सोच ही तो है |
रंक को राजा या राजा को रंक बना दे ,
बस एक सोच ही तो है |
सत्यभी एक सोच ही है , असत्य भी एक सोच ही ,
कर्मण्यता भी एक सोच ही है , और शिथिलता भी एक सोच ही |
प्रेम भी एक सोच है और करुणा भी एक सोच ही ,
मानवता भी सोच ही है और पाशविकता भी सोच ही |
चेतनता भी सोच ही है और जड़ता भी एक सोच ही
ज्ञान भी सोच ही है और मूढ़ता भी एक सोच ही |
जीवन भी तो सोच ही है और मृत्यु भी एक सोच ही
सृजन भी हाँ सोच ही है और विनाश भी एक सोच ही |
गीता और क़ुरान यही है और ईसा का बलिदान यही ,
बुद्ध का निर्वाण यही है और नानकजी का पाठ यही |
सोच से ही मैं बना हूँ और सोच से भी तुम ही ,
सोच ही शुरुआत भी है और सोच ही है अंत भी |
कितनी बलशाली है यह सोच , और कितनी मतवाली भी ,
सदियों से है इसका परचम , और रहेगा विद्यमान भी |
आओ अपनी सोच को बढ़ाएँ और आगे बढ़ें , और आगे बढ़ते ही रहे ...
लेकिन फिर मैं सोचता हूँ , कि...
अपनी सोच को आगे बढ़ाना भी तो एक सोच ही तो है ,
एक सोच ही तो है
बस एक सोच ही तो है ||
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